लेखनी कविता - ऊँट - बालस्वरूप राही

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ऊँट / बालस्वरूप राही ऊँट बड़े तुम ऊट-पटाँग! गरदन लंबी, पूंछ जरा-सी आँखें छोटी, दाटत बड़े, ऊबड़-खाबड़ पीठ, ऊँघते रहते अक्सर खड़े-खड़े। बँधी गद्दियाँ हैं पैरों में लेकिन झाडू जैसी टाँग! ...

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